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प्राचीन भारत के मगध महाजनपद की गद्दी मौर्य वंश के राजा चंद्रगुप्त मौर्य को हासिल होने का आधार मानी जाती हैं महान विद्वान चाणक्य या कौटिल्य की रणनीतियां।
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चाणक्य के नाम एक और मिसाल है- अर्थशास्त्र। यानी ‘अर्थ’ (संपत्ति, संपन्नता) का विज्ञान, जो बताता है कि एक राजा की राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक नीतियां कैसी हों।
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यूं तो आज का समाज, अर्थव्यवस्था के आधार और व्यापार नीतियां चाणक्य के समय से बिलकुल अलग हैं, अर्थशास्त्र की कई बातें आज भी प्रासंगिक हैं।
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आर्थिक संपन्नता का आधार हैं कृषि, व्यापार और उद्योग। खेती में सिंचाई, क्रॉप रोटेशन जैसे इनोवेशन और उद्योग में फैक्ट्री निर्माण, टैक्स में राहत जैसी कोशिशें जरूरी।
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चाणक्य के मुताबिक फिस्कल और मॉनिटरी पॉलिसी दोनों में बैलेंस होना चाहिए। वह इसके लिए टैक्स का समर्थन भी करते हैं जिससे सरकारी खजाना दुरुस्त रहे।
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घरेलू व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सरकार को हाइवे, कनाल जैसे बुनियादी ढांचे का निर्माण करना चाहिए।
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इकॉनमी को संभालना राजा का दायित्व, सक्रिय हो भूमिका। 21वीं सदी में बढ़ते संरक्षणवाद की तरह चाणक्य का भी मानना था कि अपने हित के बारे में सबसे पहले सोचे राज्य।
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वित्तीय मजबूती के लिए बचत और विवेकपूर्ण खर्च पर हो ध्यान। सोच-समझकर खर्च करना संपन्नता बढ़ाने का पहला कदम है।
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चाणक्य के मुताबिक ‘अर्थ’ सिर्फ ‘धर्म’ और ‘काम’ जैसे लक्ष्यों तक पहुंचने का रास्ता है, खुद डेस्टिनेशन नहीं। इसलिए ध्यान लक्ष्य पर हो, ‘अर्थ’ पर सीमित नहीं।
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चाणक्य ने शासन, राजनीति और विकास को समाज कल्याण से जोड़ा है। उनके मुताबिक राजा प्रजा का पालक है और ये धर्म (नैतिक मूल्य) ‘अर्थ’ से ऊपर होना चाहिए।
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एक राष्ट्र की मजबूती और स्थिरता के लिए संपन्नता और आर्थिक वृद्धि जरूरी है। ऐसे देशों की सैन्य क्षमता भी होती है दमदार।
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